बटवारा – एक शानदार फैसला (Excellent Decision)
पिता – ध्यानचंद
बड़ा पुत्र – राहुल
मजला पुत्र – नरेश
छोटा पुत्र – मुकेश
राहुल – पिताजी ! पंचायत इकठ्ठी हो गई, अब बँटवारा कर दो।
सरपंच – जब साथ में निबाह न हो तो औलाद को अलग कर देना ही ठीक है, अब यह बताओ तुम किस बेटे के साथ रहोगे ?
(सरपंच ने ध्यानचंद जी से पूछा।)
राहुल – अरे इसमें क्या पूछना, चार महीने पिताजी मेरे साथ रहेंगे और चार महीने मंझले के पास चार महीने छोटे के पास रहेंगे।
सरपंच – चलो तुम्हारा तो फैसला हो गया, अब करें जायदाद का बँटवारा !
अमर चंद – (जो सिर झुकाये बैठा था, एकदम चिल्ला के बोला,) कैसा फैसला ? अब मैं करूंगा फैसला, इन तीनो को घर से बाहर निकाल कर “चार महीने बारी बारी से आकर रहें मेरे पास ,और बाकी महीनों का अपना इंतजाम खुद करें ….” “जायदाद का मालिक मैं हूँ ये नहीं।”
तीनो लड़कों और पंचायत का मुँह खुला का खुला रह गया, जैसे कोई नई बात हो गई हो.
👌 इसे कहते हैं फैसला (Excellent Decision)