मेरा प्रिय कवि पर निबन्ध 600+ शब्दों में Essay on My Favorite Poet in Hindi :- नमस्कार दोस्तों आज फिर हम लेकर आये है आपके लिए एक शानदार जबरदस्त निबंध लेखन पोस्ट जिसमे आपको Mera Priy Kavi Par Nibandh hindi me पढ़ने को मिलने वाला है।
अनुक्रम
मेरा प्रिय कवि पर निबन्ध रुपरेखा
- प्रस्तावना
- जीवन- परिचय
- सहितित्यक परिचय
- भक्ति का रूप
- लोक नायकत्व
- काव्य-सौष्ठव
- उपन्हार
मेरा प्रिय कवि पर निबन्ध पर प्रस्तावना
गोस्वामी तुलसीदास ने राम का लोकव्यापी मंगलमयी रूप प्रस्तुत कर त्रसित जनता को ‘राम-राम’ कष्ट निवारक मन्त्र दिया। तुलसी की वाणी के रस द्वारा सिंचित होकर भक्ति की पवित्र कल्पना ने काल-ग्रीष्म की तपन से संतप्त भारतीय जीवन को सरस एवं राममय बनाया। समाज को आशाप्रद अनुभूति प्रदत्त की।
तुलसीदास का जीवन-परिचय
तुलसीदास का जन्म सं. 1554 शुक्ला, सप्तमी को बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान एटा के सोरों को इनकी जन्मस्थली मानते हैं। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था-
“गोद लिये हुलसी फिरै, तुलसी सो सुत होय।”
अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण तुलसी का बचपन बड़े कष्ट से बीता। इनके गुरु श्री नरहरिदास थे। इनका विवाह दीनबन्धु पाठक की विदुषी कन्या रत्नावली से हुआ। ये अपनी नत्नी पर इतने आसक्त थे कि उनके मायके जाने पर आधी रात के समय ससुराल पहुँच गये। इस पर पत्नी ने इन्हें फटकार लगायी-
“अस्थि-चर्म-मय देह मम, ता में ऐसी प्रीति।
तैसी जो श्रीराम में, होत न तौ भय-भीति॥”
तुलसी को पत्नी की बात लग गयी। वे उसी क्षण घन त्यागकर राम की खोज में निकल पड़े। इन्होंने स्वयं को राम के चरणों में समर्पित कर दिया। तुलसी ने काशी में रहकर रामचरित
का बखान किया। सम्वत् 1680 में आपका देहान्त हो गया-
“संवत् सोलह सौ असी, असी अंग के तीर।
श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यौ शरीर ।”
तुलसीदास का साहित्यिक परिचय
महाकवि तुलसीदास ने अनेक ग्रन्थों की रचना की। उनमें रामचरितमानस, विनय-पत्रिका, दोहावली और कवितावली अधिक प्रसिद्ध हैं। तुलसीदास का कीर्ति स्तम्भ
रामचरितमानस है। यह हिन्दू धर्म का महान ग्रन्थ है। इसमें राम का आदर्श चरित्र अंकित है। सात काण्डों में विभाजित इसका कथानक अत्यन्त व्यवस्थित एवं नाटकीय है तुलसीदास में मार्मिक स्थलों को पहचानने की अपूर्व क्षमता है। राम का अयोध्या त्याग, वन-गमन, केवट-मिलन, भरत-भेंट, शबरी-आतिथ्य, सीता को मुद्रिका प्राप्ति, लक्ष्मण-शक्ति आदि ऐसे स्थल हैं, जिनमें तुलसी
की सहृदयता, भावुकता, विचार-पटुता का परिचय मिलता है। विनय-पत्रिका में कवि की भक्ति-भावना व्यक्त हुई है। तुलसी के राम में सत्यं, शिवं एवं सुन्दरम् का अद्भुत समन्वय है।
लोक-संग्रह, मानव मर्यादा और मानवीय प्रकृति रहस्योद्घाटन करने में तुलसी की कला अद्वितीय है। ‘रामचरितमानस’ भक्ति, ज्ञान के प्लावित तथा सत्य से विभूषित सरिता है।
भक्ति का रूप
तुलसी के मर्यादा पुरुषोत्तम राम शक्ति, शील और सौन्दर्य के अवतार हैं। वे लोकरक्षक तथा भक्त-वत्सल हैं। वे परित्राणाय साधूनाम विनाशाय व दुष्कृताम्’ अवतरित हैं। दीन-हीन तुलसी उन्हीं के प्रति समर्पित हैं।
तुलसी की भक्ति दैन्य भाव है।
लोकनायकत्व
लोकनायक तुलसी के काव्य की प्रमुख विशेषता समन्वय है। इसमें विरोधी प्रवृत्तियों, अनेक संस्कृतियों, विविध धर्मों तथा सम्प्रदायों, नाना विचारधाराओं में समन्वय को सत्य है कि, तुलसीदास ने तत्कालीन समाज की विकृत दशा कुशल वैद्य के समान जान लिया था।”
उन्होंने उसी के अनुरूप समाधान प्रस्तुत कर सशक्त समाज की रचना का सन्देश दिया। सगुण-निर्गुण, भक्ति एवं कर्म का समन्वय करते हुए वे लिखते हैं-
“अगुनहिं सगुनहिं नहिं कछु भेदा।
गावहि श्रुति पुराण बुध वेदा॥
अगुन, अरूप, अलख अज जोई।
भगत प्रेमबस सगुन जो होई॥”
काव्य-सौष्ठव
तुलसी के काव्य में भाव और कला दोनों का मणिकांचन संयोग हुआ है। तुलसी रससिद्ध कवि हैं। उनके साहित्य में शान्त, वीर, श्रृंगार, रौद्र आदि सभी रसों का परिपाक हुआ है।
पात्र एवं प्रसंग के अनुरूप तुलसी की भाष में प्रसाद, माधुर्य और ओज गुणों का सुन्दर संगम है। सर्वत्र प्रवाह, सरसता, सुबोधता एवं भाव-सबलता का निर्वाह हुआ है।
उनका शब्द-चयन श्रेष्ठ है। सभी प्रचलित शैलियाँ उनके काव्य में विद्यमान हैं। भाव के अनुरूप छन्द-चयन में वे पारंगत हैं।
उपसंहार -मेरा प्रिय कवि पर निबन्ध
तुलसीदास हिन्दी साहित्याकाश में शशि के समान दैदीप्यमान हैं।
वे सहृदय, समाज-सुधारक, युग-द्रष्टा और युग-सृष्टा थे। तुलसी मात्र कवि न होकर जन-जागरण के दूत थे। वे भारतीय पुनरुत्थान के स्तम्भ थे। यही कारण है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम के भक्त तुलसी का मैं भक्त हूँ।
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